qesehmk
12-30-2012, 09:10 PM
A poem by Amitabh Bachchan in honor of Delhi rape victim - Damini.
समय चलते मोमबत्तियॉं जलकर बुझ जाएँगी,
श्रद्धा में डाले पुष्प जलहीन मुरझा जाएँगे,
स्वर विरोध के और शांति के, अपनी प्रबलता खो देंगे,
किंतु निर्भयता की जलाई अग्नि हमारे हृदय को प्रज्वलित करेगी....
जलहीन मुरझाए पुष्पों को हमारी अश्रुधाराएँ जीवित रखेगी,
दग्ध कंठ से "दामिनी' की "अमानत' आत्मा विश्*वभर में गूँजेगी,
स्वर मेरे तुम दल कुचलकर पीस न पाओगे...
मैं भारत की मॉं, बहन, बेटी हूँ,
आदर और सत्कार की मैं हकदार हूँ,
भारत देश हमारी माता है,
मेरी छोडो; अपनी माता की तो पहचान बनो....
समय चलते मोमबत्तियॉं जलकर बुझ जाएँगी,
श्रद्धा में डाले पुष्प जलहीन मुरझा जाएँगे,
स्वर विरोध के और शांति के, अपनी प्रबलता खो देंगे,
किंतु निर्भयता की जलाई अग्नि हमारे हृदय को प्रज्वलित करेगी....
जलहीन मुरझाए पुष्पों को हमारी अश्रुधाराएँ जीवित रखेगी,
दग्ध कंठ से "दामिनी' की "अमानत' आत्मा विश्*वभर में गूँजेगी,
स्वर मेरे तुम दल कुचलकर पीस न पाओगे...
मैं भारत की मॉं, बहन, बेटी हूँ,
आदर और सत्कार की मैं हकदार हूँ,
भारत देश हमारी माता है,
मेरी छोडो; अपनी माता की तो पहचान बनो....